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शब्दार्थ
० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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७० बोलाया जे० जहां हा० हाला हला कुं. कुंभकारिणी कुं० कुंभकारशाला जे० जहां गो० गोशाला *
मखलिपुत्र ते तहां उ०गया॥७॥३० आज से चि बहुत काल पहिले के कोई उ० ऊंचनीच व०वणिक अ० अर्थ के अर्थी अ० लोभी अ० अर्थ गवेषणा वाले अ० अर्थ की कांक्षावाले अ० अर्थ पि०पिपासु अ० है अर्थ केलिये णा विविधप्रकारके वि विपुल प०किराणा भ०पात्र आलेकर सगाडा गाडीमें सुबहुत भ० अन्न पानी प०पथ्य अन्न ग लेकर ए०एक म बडा अग्राम रहित अ०अतिगहन छिरस्ता रहित दी बहुत रिए कुंभकारावणे जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, ॥ ७१ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं एवं वयासी एवं खलु आणंदा ! इतो चिराईयाए केइ उच्चावया वणिया अत्थत्थी,अत्थलुहा, अत्थगवेसी, अत्थकंखिया, अत्थपिवासिया अत्थगवेसणयाए णाणाविह विउल पणिय भंड मायाय सगड़ीसगडेणं सुबहुं भत्तपाण
पत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं अणोहियं छिण्णावायं दीहमई अडविं अणुप्पविट्ठा बोला तब वह हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकार शाला में मंखली पुत्र गोशाला की पास गया ॥ ७१॥ मखली पुत्र गोशाला आनंद स्थविर को ऐसा बोला कि अहो आनंद ! आज से कितने काल पहिले धन
पी, धन में लुब्ध, धन की गवेषणा करने वाले, और धन की कांक्षा करनेवाले कितनेक छोटे बडे 21 वणिक धन की गवेपणा के लिये विविध प्रकार के बहुत मनोज्ञ भंडोपकरण गाडे में डालकर और बहुत
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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