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शब्दार्थ यावत् उ० ऊंच नी० नीच.म० मध्य जा. यावत् अ० फीरते हा. हालाहला कुं० कुंभकारी की
० अ० नजदीक से बी• गया ॥ ६९ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला मं. मंखलिपुत्र आ० आनंद थे०१०७
स्थविर को हा० हाला हला कुं० कुंमकारिणी के कुं० कुंभकारावासकी अ० नजदीक वी० जाते पा० पा० देखकर ए० ऐसा व० बोला ए० आव आ० आनंद इ० यहां ए० एक म० बड़ा उ० दृष्टान्त णि मून ॥ ७० ॥ त० तब से वह आ• आनंद थे० स्थविर गो० गोशाली मं० मंखलिपुत्र से ए. ऐसा
तहेव जाव उच्चणीय मज्झिम जाव अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीईवयइ ॥ ६९ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीईवयमाणं पासइ, पासइत्ता एवं वयासी-एहि ताव आणंदा ! इओ, एगं महं उवमियं णिसामेह ॥ ७० ॥ तएणं
से आणंदे थेरे गोसालेणं मखलिपुत्तेणं एवं वुत्तेसमाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकाभावार्थ कुंभकार की दुकान की पास जाते थे. ॥ ६९ ॥ मखली पुत्र गोशाला आनंद स्थविर को हालाहला
is कुंभकारी की कुंभकार शाला की पास जाते हुवे देखकर ऐमा बोला कि अहो आनंद ! तुम यहां
आओ, मैं तुम को एक बडी उपमा (द्रष्टांत) कहुं ॥ ७॥ जब मंखलीपुत्र गोशाला आनंद स्थविर को ऐसा
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488
38०38848 पन्नरहदा शतक <8888