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शब्दार्थ
9 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अमर्ष ३० रखता वि. विचरता है ॥ ६७ ॥ ते. उस काल ते. उस समय में स० श्रमण भ० भगवन्त । म. महावीर का अं० अंतेवासी आ० अनंद थे० स्थविर ५० प्रकृति भाद्रिक जा० यावत् वि. विनीत छ० छठ छठ के अ० अंतर रहित त० तप कर्म से सं० संयम त तप से अ० आत्मा को भा० भावते
२०२६ वि० विचरते थे ॥ ६८ ॥ त० तब से वह आ० आनंद थे० स्थविर छ. छठ क्षमण पा० पारणे में १५० प्रथम पो पोरिषी में ए. ऐसे ज० जैसे गो० गौतम स्वामी त० तैसे आ० पूछे त० तैसे जा० __ वहमाणे एवं वावि विहरइ॥६७॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महा
वीररस अंतेवासी आणंदे णाम थेरे पगइभदए जाव विणीए छटुंछट्टेणं अणिखित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ ६८ ॥ तएणं से आगंदेथेरे
छट्टक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, के कुंभकार की दुकान में आकर आजीविक से परवरा हुवा बहुत ईर्षा करनेलगा. ॥३७॥ उस काल उसी समयमें महावीर स्वामीका प्रकृति भद्रिक यावत् विनीत आनंद नामका शिष्य निरंतर छठ२ के तप से आत्मा को भावते हुवे विचरते थे ॥ ६८ ॥ छठ के पारने के दिन प्रथम पौरुषि में स्वाध्याय यों गौतम स्वामी जैसे श्री महावीर स्वामी को पुछकर ऊंच नीच व मध्यकुल में यावत् फीरते हुवे हालाहला कुंभकारीकी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावार्थ