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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
{मं० मंखलि ना० नाम का मं० भिक्षुक पि० पिता हो० था त तब त० उस मं० भिक्षुक को ए० ऐसे (स० सब भा० कहना जा० यावत् अ० अजिन जि० जिन प्रलापी जिंο जिन शब्द प० कहता (वि० विचरता है तं० इसलिये गो० नहीं गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र जि० जिन जि जिन प्रलापी [जा० यावत् वि० विचरता है गो० गोशाला मं० मंखलि पुत्र अ० अजिन जि० जिन प्रलापी वि० विचरता स० श्रमण भ० भगवन्त म० महाबीर जि० जिन जि० जिन प्रलापी जा० यावत् जि० जिन शब्द इक्खइ जाव परूवेइ, एवं खलु तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखलीणामं मंखपिता होत्था । तएणं तस्स मंखरस एवं तंचेव सव्वं भाणियव्वं जाव अजिणे जिणप्पलावी जिणसद्दं पगासमाणे विहरइ ॥ तं णो खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिण लावी जाव विहरइ गोसालेणं मंखलिपुत्ते अजिणे जिणप्पलावी विहरs ||
खली पुत्र गो
{ बोलने यावत् प्ररूपने लगे कि मंखली पुत्र गोशाला कि जो जिन जिन प्रलाप करता हुवा विचरता है वह { मिथ्या है क्यों की श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं कि ईशाला का पिता मेख था, उस को भद्रा भार्या थी वगैरह सब कथन पूर्वोक जैसे कहना यावत् अजिन होने पर जिन हूं ऐसा प्रलाप करता हूवा विचरता है, इसलिये मंखली पुत्र गोशाला
जिन व जिन
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
२०२४