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- शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ए एक वि० विकटासन से छ० छठ छठ से उ० ऊर्ध्व बा० बाहु प० रखकर जा० यावत् वि० विचरता हे त० तत्र गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र को अं० अंदर छ० छमास की सं० संक्षिप्त वि० विपुल ते० तेजोलेश्या जा० उत्पन्न हुइ ॥ ६३ ॥ त० तब गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र को अ० एकदा छ० छदिशाचर अं० पास पा० आये तं० वह ज० जैसे सा० साथ तं० तैसे स० सर्व जा० यावत् अ० अजिन जि० जिन शब्द प० कहता वि० विचरता है णो० नहीं गो० गौतम गो० ( गोशाला मं० मंखलिपुत्र जि० जिन जि० जिनमलापी जा० यावत् जि० जिन शब्द पर कहता छटुं छट्टेणं उड्डुं बाहाओ पगज्झिय २ जाव विहरइ || तरणं से गोसाले मंखलिपुत् अंतो छण्ह मासाणं संखित्त विउलतेयलेस्से जाए ॥ ६३ ॥ एणं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अण्णयाकयाइ इमे छदिसाचरा अंतियं पाउन्भवित्था - तंजहा- साणे तंचेव सव्वं जाव अजिणे जिणसद्दं पगासमाणे विहरइ तं णो खलु गोयमा! गोसाले मंखलि ( वाकले और एक चुल्लू पानी लेकर निरंतर बेले २ पारने करके ऊर्ध्व वाहा से सूर्य की आतापना लेता (हुवा विचरने लगा और छमास में उस को संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या हुइ ॥ ६३ ॥ अब एकदा मंखली पुत्र गोशाला की पास साण आदि छ दिशाचर आये, उन से अष्टांग निमित्त का ज्ञान प्राप्त कर यावत् । अजिन होने पर जिन शब्द का प्रकाश करता हुवा विचरता है. अहो गौतम ! मंखली पुत्र गोशाला
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
२०२२