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________________ 8888888° शब्दार्थ म० मुझे प० छोडकर अ० यह पि० मिथ्यावादी भ० होवे त्ति ऐसा करके स० धीमे धीमे ५० पीछा । जाकर जे. जहां से वह ति० तिल का वृक्ष ते. तहां उ० आकर जा. यावत् ए. एकांत में ए. डाले} ore इत. तत्क्षण गो० गोशाला दि० दीव्य अ० वर्षा के बद्दल पा० उत्पन्न हवे त० तब से वह दि० दीव्य अ० वर्षा के बद्दल खि० शीघ्र तं तैसे जा० यावत् ति० तिलके वृक्ष की ए० एक ति. तिलसींग में मे स० सात ति० तिल ५० उत्पन्न हुवे' तं• इसलिये गो० गोशाला से वह ति० तिलका वृक्ष णि उत्पन्न । रोयसि, एयमटुं असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे ममं पणिहाय अयंणं मिच्छावादी भवउत्ति कटु ममं अंतियाओ सणियं सणियं पच्चोसकइ, पच्चोसक्कइत्ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता जाव एगंतमंते एडेसि, तक्खणमेत्तं गोसाला! दिव्वे. अब्भबद्दलए पाउन्भूए, तएणं से दिव्वे अब्भबद्दलए खिप्पामेव तंचेव जाव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सन्ततिला पञ्चायाता तं एसणं भावार्थ श्रद्धा प्रतीति व रुचि हुइ नहीं और इस तरह श्रद्धा प्रतीति व रुचि नहीं होने से मैं मिथ्यावादीई होऊं ऐसा विचार कर मेरी पास से तू शनैः २ पीछा गया और तिल स्तंभ की पास जाकर उसे मूल मेंY मे उखेड कर अलग डाल दिया. अहो गोशाला ! उसी क्षण में दीव्य अभ्रबद्दल हुए और उस में पानी पडा यावत् तिलस्तंभ की एक तिल फली में सात तिलपने उत्पन्न हए. अहो गौतम ! 48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( पन्नरहवा शतक 48862
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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