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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
होगा तं० तैसे प० उत्पन्न होंगे तं० वह मि० मिथ्या इ०यह प०प्रत्यक्ष दीदीखता है ए० यह तितिलकावृक्ष, को नहीं णि उत्पन्न हुवा ते ० वे स० सात ति तिल पुष्प के जी० जीव उ०चवकर णो० नहीं ए० इस ति• तिलके वृक्ष की ए० एक ति०तीलफली में स० सात तिल ५० उत्पन्न हुवे ॥ ५७ ॥ त० तब अ० मैं गो. गौतम गो० गोशाला में मखलिपत्र को ए. ऐसा व. बोला तु० तुम गो० गोशाला म. मुझे एक ऐसा आ. कहते जा० यावत् प० प्ररूपते ए. इस अर्थ णो नहीं स० श्रद्धा णो० नहीं प० प्रतीत किया णो नहीं रो० रूचा ए० एस अर्थ को अ० नहीं श्रद्धता अनहीं प्रतीत करता अ० नहीं रुचता
णो णोणिप्पजिस्सइ, तंचेव पञ्चायाइस्संति, तंणमिच्छा इमंचणं पच्चक्खमेव दीसइ, एसणं तिलथंभए णो णिप्पण्णे अणिप्पण्णमेव तेय सत्ततिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता २ णो एयस्स चेव तिलथंभगरस एगाए तिलसंगलियाए सत्तातिला पञ्चायाता ॥ ५७ ॥ तएणं अहं गोयमा ! गोसालं. मंखलिपुत्तं एवं वयासी तुमंणं गोसाला ! तदा ममं ।
एवं आइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयमटुं णो सद्दहसि णो पत्तियसि णो । यह प्रत्यक्ष दीखता है कि यह तिलस्तंभ उत्पन्न नहीं हुआ है. और तील पुष्प के सात जीवों वहां से चवकर इस तिल स्तंभ की तिलफली में सात तिलपने उत्पन्न नहीं हुवे हैं ॥५७॥ अहो गौतम ! उस समय मैंने मंखली पुत्र गोशाला को ऐसा कहा कि अहो गौशाला ! मैंने जो तुझे उस समय कहा था उस में
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावार्थ