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शब्दार्थ |
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त० तुमारा स० शरीर को किं० किंचित् आ० पीडा वा० व्याबाध छ० चर्मच्छेद अ० नहीं कीया पा० {देखकर सा० उस उ० ऊष्ण ते० तेजो लेश्या को प० साहरनकर म० मुझे ए० ऐसा व० बोला से० वह ग० जाना ए० यह मं० भगवन् ॥ ५३ ॥ त० तब गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र म० मेरी अं० पास से ए० यह अर्थ सो० सुनकर णि० अवधारकर भी० डरा हुवा जा० यावत् सं० उत्पन्न हुवा भ० भय क० कैसे मं० भगवन सं० संक्षिप्त वि० विपुल ते ० तेजोलेश्या भ० होती है त० तब अ० मैं गो० गौतम गो० तेलेस्सं णिसिरामि जाव पडिहयं जाणित्ता तवसरीरगस्स किंचि आवाहंव वाबाहंवा छविच्छेदंवा अकीरमाणे पासित्ता सा उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति २ त्ता ममं एवं बयासी से गयमेयं भगवं ! गयगयमेयं भगवं ॥ ५३ ॥ तरणं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं अंतियाओ एयम सोच्चा णिसम्म भीए जाव संजायभए, ममं एवं वयासी कहिण्णं भंते ! संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ ? तएणं अहं गोयमा ! गोसालं {लेश्या नीकाली. अहो गोशाला ! तेरी अनुकंपा से वैशायन बाल तपस्त्री की तेजोलेश्या का मंहारन { करने के लिये वीच में मैंने शीतल तेजो लेश्या नीकाली. मेरी शीतल लेश्या से उन की ऊष्ण तेजो लेश्या हणाइ हुइ देखकर और तेरे शरीर को किंचिन्मात्र वाधा पीडा नहीं हुइ देखकर उसने ऊष्ण तेजो लेश्या पीछी खींचली. और मुझे ऐसा बोला. अहो भगवन् ! मैंने यह जाना. मैंने यह जाना ॥ ५३ ॥
46- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
भावाथ
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पनरहवा शतक १०
२०१५