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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी **
॥ ५० ॥ त• तब से वह वे० वैश्यायन बा० बालतपस्वी सी० शीतल ते तेजो लेश्या से सा. उस उ०१. ऊष्ण ते तेजो लेश्या को प० दूर की जा जानकर गो० गोशाला में मखलिपुत्र को कि० किंचित् है आ० आवाध वा. व्याध छ० चमच्छेद अ. नहीं किया पा० देखकर सा० उस उ.
२०१२ ऊष्ण ते. तेजो लेश्या ५० पीछीली म. मुझे ए० ऐमा व. बोला ग. जाना एक यह ग० जाना ए. यह भ० भगवन् ॥५१॥ त० तव स० यह गो० गोशाला मं० खलीपुत्र म. मु ऐसा व० बोला किं० कैमे भं• भगवन् ए. यह जू० यूका सि. शैय्यान्तर तु. तुम को ए. ऐसा व.
॥ ५० ॥ तएणं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सीयलियाए तेयलेस्साए सा उसिण तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स य मंखलिपुत्तस्स किंचि आवाहवा, बावाहवा छविच्छेदंवा अकीरमाणं पासित्ता, साउसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ ममं एवं वयासीसे गयमेयं भगवं ! गय २ मेयं भगवं ! ॥ ५१ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते
ममं एवं वयासी-किं णं भंते ! एस जया सिज्जातरए तुम्मे एवं वयासी-से गयमेयं शीतल तेजो लेश्या से ऊग तेजी लेश्या का घात हुवा जानकर और मंखली पुत्र गौशाला को किंचि न्मात्र भी अबाधा, विवाधा व चर्मछद नहीं हुवा देखकर वैशायन वाल तपस्वीने अपनी तेजो लेश्या से पीछी खींचली, और मुझे कहा कि अहो भगवन् ! मैंने जाना. अहो भगवन् ! मैंने जाना ॥ ५१ ॥ फीर ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ