________________
।
800
२०१२
शब्दार्थ 40 तेजस स. समुद्धांत स० करके स० सात आठ ५० पद ५० पीछा जाकर गो० गोशाला मं० मंखलि
० पुत्र के व. वध केलिये स. शरीर ते. तेज णि निकाला ॥ ४९ ॥ त० तब अ० मैं गो. गौतम गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र को अं० अनुकंपा अर्थ वे० वैश्यायन बा० बालतपस्वी की उ. ऊष्ण ते० तेजो लेश्या पदर करने को अंक बीच में सी-शीतल ते तेजो लेश्या मि.णिकाली जा. जिस से म० मेरी इसी० शीतल त तेजो लेश्या से वे वैश्यायन वा बालतपस्वी की उ० उष्ण ते. तेजोलेश्या प.
हणइ, समोहणइत्ता सत्तट्ठ पयाई पच्चोसकइ २ त्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स } बहाए सरीरगं तेयं णिसिरइ ॥ ४९ ॥ तएणं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स अणुकंपणट्ठयाए वेसियायणस्स बालतवास्सिस्स सा उसिण तेयलेस्सा तेय पडिसाहरणट्टयाए, एत्थणं अंतरा अहं सीयलियं तेयलेस्स णिसिरामि, जाए सा ममं
सीयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स वालतवस्सिस्स सा उसिणतेयलेस्सा पडिहया नीकलकर तेजस समुद्धात बनाइ. सात, आठ पांव पीछे जाकर मंखलीपुत्र गौशाला के वध के लिये शरीर में से तेजो लेश्या नीकाली ॥ ४२ ॥ अहो गौतम ! उस समय मंखली पुत्र गौशाला की दया के
लिये वैश्यायन बाल तपस्वी की ऊष्ण तेजो लेश्या के तेज का संहारन करनेको बीच में मैंने शीतल लेश्या 1 नीकाली जिस से वैशायन वाल तपस्वी की ऊष्ण लेश्याका घात हुवा. अर्थात् वह लेश्या दूर हुई॥५०॥मेरी
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
wwwwwwwwwwwwwww
पन्नरहेवा शतक 8
भावार्थ
8
।
-