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शब्दार्थ
परीषह आ० आहार नो० नहीं आ० आहार करे आ- आहारकरे आ. आहा आ. आहार करे ५० परिणमता ५०परिणमे १० क्षीण आ० आयुष्य वाला भ० होवे जजहां उ० उपजे इत० उस आ० आयुष्य प०अनुभवे तं. उस ति तिर्यंच आयुष्य म मनुष्य आयुष्य गो. गौतम दे म० महाद्धक जा. यावत् म० मनुष्य आ० आयुष्य ॥ ९ ॥ जी. जीव भं० भगवन् ग. गर्भ में व०१
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छावत्तियं, परिसह वत्तियं, आहारं नो आहारेइ, अहेणं आहारेइ आहारेजमाणे आहारिए,परिणामिज्जमाणे परिणामिए, पहीणेय आउए भवइ, जत्थ उववजइ, तमाउयं पडिसंवेदेइ तिरिक्ख जोणियाउयंवा, मणुस्साउयंवा ? हंता गोयमा ! देवेणं
महड्डिए जाव मणुस्साउयं वा ॥९॥ जीवेणं भंते ! गम्भं वक्कममाणे किं सइंदिए वक्कमइ, भावार्थ सुखवाले, व महानुभाव देवों चयन होने का समय पास आया हुवा जानकर माता पिता का क्रीडा स्थान
देख लज्जा आन से, शुक्र शोणित का आहार की दुर्गच्छा आने से व पुगल ग्रहणरूप अरति परिषह. से .
किंचिकालतक आहार करे नहीं परंतु चचे पीछे क्षुधा वेदनीय के उदय से आहार करे. ऐमा आहार लाये हुवे, परिणमाये हुवे व प्रक्षीण आयुष्यवाले देव मनुष्य तिर्यंच का आयुष्य क्या वेदे ? हां गौतम ! . ऐसा महर्दिक देव मनुष्य तिर्यंच का आयुष्य वेदे ॥ ९ !! गर्भ में उत्पन्न होने के कारन से गर्भ की अव
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मानि श्री अमोलक ऋपिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वा सामसादजी*
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