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शब्दार्थ
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विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
गति स प्राप्त अ अविग्रहगति स प्राप्त गो गोतम स० सर्व ता० तैसे ही होवे ए. ऐसे जी. जीव ए. एकेन्द्रिय व० वर्जकर ति तीन भांग ॥ ८ ॥ दे. देव भं० भगवन् प० महाक म०ज्योतिवंत म०बलवंत म० यशस्वी म० महामुखी म०महानुभाव अ. नजदीक च० चवता किं. थोडाकाल हि० लज्जा दु० दुर्ग-ope
समावण्णगा अविग्गहगइ समावण्णगा ? गोयमा ! सव्वेवि तावहोजा. अविग्गहगइ । समावण्णगा, अहवा अविग्गहगइ समावण्णगाय; विग्गहगइ समावण्णगेय, अहवा अविग्गहगइ समावण्णगाय विग्गहगइ समावण्णगाय एवं जीव एगिदिय । वज्जो तिय भंगो ॥ ८ ॥ देवेणं भंते : महड्डिए, महज्जुइए, महब्बले,
महाजसे, महेसक्खे, महाणुभावे, अविउकंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरवत्तियं. दुगं. गति करनेवाले. हैं या अविग्रह गति करनेवाले हैं ? अहो गौतम ! नारकी में अविग्रहगतिवाले विशेष होने से अविग्रहगति में बहुवचन लीया है. और विग्रह गतियाले थोडे होवे अथवा न होवे इसलिये एक वचन लिया है. इस के तीन भांगे होते हैं १ नारकी में सब जीव अविग्रहगति संयुक्त २ अविग्रहगतिवन्त बहुत व विग्रहगतिवन्त एक ३ अविग्रह गतिवन्न बहुत व विग्रहगतिवन्त बहुत. ऐसे ही एकेन्द्रिय के पांच 80 दंडक छोडकर अन्य सब दंडक में उक्त तीनों भांगे पाते हैं. एकेन्द्रिय में विग्रहगतिवन्त व अविग्रहगति ... वंत बहुत होने से भांगा नहीं होता है ।। ८ ॥ अहो भगवन ! महर्दिक, महाद्युतिवन्त, महाबलवन्त, महा ।
पहिला शतक का साना उद्देशा
भावार्थ
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