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शब्दार्थ
4ARपंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 2880
आ. सूर्य ते तेज से त तपता छ • पट्पद म. चारोंबाजु अ० उत्पन्न होवे पा. माण भू० भूत जी०१४ जीव स० सत्त्व द० दया केलिये ५०पडी हुइ त०वहां भु० वारंवार प० मूके ॥४७॥ त तब से वह गो० गोशाला मं. मंखलिपुत्र वे० वैश्यायन वा. चालतपस्वी को पा० देखकर म० मेरी अं० पास मे स. धीमे धीमे ५० पीछा जाकर ज० जहां वे वैश्यायन बा• बालतपस्वी ते० तहां उ० आकर वे० वैश्यायन - ok बा० बालतपस्वी को ए०ऐसा व०बोला कि क्या भ० तुम म० मुनि मु० यति उ० अथवा जू• यूका स०
अभिणिस्सवेति पाणभूयजीवसत्तदयट्टत्ताए एयण्णं पडियाओ २ तत्थेव भुजो
भुजो पच्चोरुभइ ॥ ४७ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्त वेसियायणं बालतवर्सिस है पासइ, पासइत्ता ममं अंतियाओ सणियं २ पच्चीसक्कइ, पच्चोसक्कइत्ता जेणेव वेसि
यायणे वालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता वेसियायणं बालतवस्सिं एवं
वयासी-किं भवं मुणी मुणीए उदाहु जया सेज्जायरए ? तएणं से वेसियायणे बालके ताप से तप्त यूकाओं उन के बालों में से चारों तरफ नीचे गिरती थी. प्राण, भूत, जीव व सच की दया देख कर उन नीचे गीरी हुई यूकाओं को उठाकर अपने मस्तक में वारंवार रखता था ॥४७॥ हैवहां पर मंखलीपुत्र गौशाला वैशायन बाल तपस्वी को देखकर शनैः २ मेरी पास से पीछे गया. और वैशायन पर तपस्वी की पास जाकर ऐप्ता बोला क्या नू मुनि तपस्वी है, यति है, कदाग्रही है अथवा यूकाओं का
0380868 पन्नरहवा शतक
भावार्थ
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