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शब्दार्थ
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* अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी ?
स० सात तिल प० उत्पन्न हुवे ॥ ४६ ॥ त० तब अ० मैं गा गौतम गोगोशाला में मंखलिपुत्र की स018 साथ जे. जहां कु० कूर्मग्राम ते. तहां उ० गया ॥४७॥ त तब तक उस कु. कूर्मग्नाम की ब०१ बाहिर वे० वैश्यायन बा. यालतपस्वी छ० छठ छठ से बाहु मे १० रखकर सू० सूर्याभिमुख से आ० आतापन भूमि में आ० आतापनालेते वि० विचरता है। तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पञ्चायाया ॥ ४६॥ तएणं अहं गोयमा ! गोसालेणं मखलिपुत्तेणं सद्धिं जेणेव कुम्मगामे णयरे तेणेव उवागच्छामि ॥ ४७ ॥ तएणं तस्स कुम्मगामस्स णयरस्स बहिया बोसियायणे णाम बालतवस्सी
छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवाकम्मेणं उट्ठे बाहाओ पगिझिय २ सूराभिमूहे आया. वणभूमीए आयावेमाणे विहरइ, आइच्चतेयतवियाओ से छप्पदीओ सव्वओ समंता प्राप्त हुवा, उत्पन्न हुवा, उ के मूल कन्ध, ओर उस के उक्त सातों जीव वहां से चवकर उस स्तंभ की एक तिल फलि में सात तिलपने उत्पन्न हुए ॥ ४६ ॥ अहो गौतम ! मैं वहां से गौशाला की साथ कूर्मच ग्राम नगर में गया ॥ ४७ ॥ वहां पर कूर्म ग्राम नगर की वाहिर वैश्यायन नामका बाल तपस्वी छठ २ के निरंतर तप कर्म से ऊंची वाहा कर सूर्याभिमुख से आतापना भूमि में आतापना लेता हुवा रहता था. सूर्य
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावाथे