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शब्दार्थ * उ० चक्कर ए. इस तितिलवृक्ष की ए. एक ति तिल की सं० फली में ससात तिः तिल ५० उत्पन्न ।
होंगे ॥ ४५ ॥ त० तब से वह गो. गोशाला मं० मखलि पुत्र म. मुझे एक ऐसा आ० कहते ए. इस अर्थ को णो० नहीं स० श्रद्धे णो नहीं प० प्रतीत किये णो नहीं रो० रूचे ए० इस अर्थ को अ० न श्रद्धता अ० नहीं प्रतीत करता अ० नहीं रूचता म० मेरी म० आश्री अ० यह म० मिथ्यावादी होवो त्ति. ऐसा कर के प० मेरी अं० पास से प० पीछा जाकर जे. जहां ति. तिल वृक्ष ते. तहां उ. जाकर तं. उस ति० तिलवृक्ष को स. मूल सहित उ. उपाडकर ए. एकांत में ए. डालकर त.' तत्क्षण
जीया उद्दाइत्ता २ एयरस चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्ततिला पञ्चा यातिस्संति ॥ ४५ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयम8 णो सद्दहति, णो पत्तियति, णो रोएइ, एयमटुं असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे मम पणिहाय अयण्णं मिच्छावादी भवउत्ति कटु, ममं अंतियाओ सणियं २ ।
पच्चोसक्का २ जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता तं तिलथंभगं । भावाथे
स्तभं उत्पन्न होगा. और पुष्प के सात जीव वहां से चलकर इस की फली में सात तिलपने उत्पन्न होंगे. ॥४५॥ मखली पुत्र गोशालाने मेरे इस कथन पर श्रद्धा रुचि व प्रतीति की नहीं और इस तरह श्रद्धा प्रतीति व रुचि नहीं करते मेरे आश्रय में ही रहकर मैं मिथ्यावादी होऊ ऐसा विचार करके मेरी पास से
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gh
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*