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शब्दार्थ
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+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
विचरताथा ॥ ४२ ॥ त० तब अ मैं गो० गौतम अ० एकदा ५० प्रथम म. शरद ऋतु में भ• अल्प । बु० वर्षाद में गो० गोशाला में मखलि पुत्र की स. साए लि. सिद्धार्थ ग्राम न. नगर से कु०. कूर्मग्राम, न. नगर को सं० चले वि० विचरने को ॥ ४३ ॥ ता० उस सि. सिद्धार्थ ग्राम से कु० कूर्मग्राम की 40 बीचमें म. बडा ए. एक ति० तिलका वृक्ष प० पत्र वाला पु. पुष्प बाला ह० हरित से रि० विराजमान सि• शोभासे अ० अतीव उ० शोभता चि० रहा है ॥ ४४ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला में
दुक्ख सकारमसक्कारं पञ्चणुब्भवमाणे अणिच्च जागरियं विहरित्था ॥ ४२ ॥ तएवं अहं मोयमा ! अण्णधाकयाई पढमं सरदकालसमयंसि अप्पवुट्रिकार्यसि गोसा. लेणं मंखलिपुत्तेणं सहिं सिद्धत्थ गामाओ जयराओं कुम्मगाम जयरं संपट्टिए. विहा राए ॥ ४३ ॥ तस्सणं सिद्धत्थगामस्स णयरस्सा कुम्मगामस्सय जयरस्सय अंतरा
एत्थणं महं एगे तिलथंभए पत्तिए पुप्फिए हरियगरे रिजमाणे. सिरीए अईव२ उबसोभे भूमि में छ वर्षपर्यंत लाभ, अलाभ, मुख, दुःख, सत्कार व असत्कार, अनुभवता हुवा अनित्य जागरणा करने लगा ॥ ४२ ॥ एकदा प्रस्तावे अल्पवृष्टिचाले शरदकाल [ मृगसर मास ] में भेखली पुत्र गौशाला की साथ सिद्धार्थ नगर से कूर्म ग्राम में जाने को नीकला ॥ ४३ ॥ उक्त सिद्धार्थ नगर व कूर्म ग्राम की बीच में एक बड़ा पत्र व पुष्प सहित तीलस्तंभ अतिशय शोभता हुवा रहाथा.. ॥४४ ॥ मंखली पुत्र. मौशा-
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प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहावनी मालागसादनी
भावार्थ
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