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शब्दार्थ
4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ज० यश व० वल बी० वीर्य पु० पुरुषात्कार प० पराक्रम ल. लग्ध ५० प्राप्त अ० सन्मुख हुए णो०१। नहीं अ० है ता. तैसी अ. अन्य क. किसी को ता तथारूप स०.श्रमण मा. मोहण कीड ऋद्धि जु० युति जा. यावत् प० पराक्रम स० लब्ध प. प्राप्त अ० सन्मुख हुए तं० इसलिये ए. संदेह
न ३० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर भ० होंगे ति. ऐसा क को कोल्लाक स. सन्निवेश की ब० बाहिर म० मुझे स. चारोंबाजु म० मार्ग गवेषणा क• करे म० मुझे स. चारोंबाजु क० करके को० कोल्लाक स० सन्निवेश की ब० बाहिर ५० मनोज्ञ भू० भूमि में म० मेरी
जुत्ती जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, णो खलु अत्थि है तारिसियाणं अण्णस्स कस्सवि तहारूवस्स समणस्सवा माहणस्सवा, इड्डी जुत्ती जाव परक्कमे लढे पत्ते अभिसमण्णागए तं हिस्संदिवणं, एत्थं धम्मायरिए धम्मोवएसए । समणे भगवं महावीरे भविस्सतीति कटु, कोलागसण्णिवेसे सब्भितर बाहिरिए ममं सव्वओ
समता मग्गणगवसेणं करेइ, ममं सवओ जाव करेमाणे कोलगसाण्णवेसस्स *देशक वही श्री श्रमण भगवंत महावीर होगा. ऐसा कहकर कोल्लास सन्निवेश की बाहिर चारों तरफ मेरी
गवेषणा की. इस तरह गवेषणा करते कोल्लाग सन्निवेश के बाहिर उतरने के स्थान मुझे मीला ॥ ३९ ॥
काशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादजी *
भावार्थ