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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
-8088+- पंचमाङ्ग विवाह पण्णास ( भगवती ) सूत्र +8+
चशे की व० बाहिर वक्त जः मनुष्य अ व० धन्य दे० देवानुप्रिय ० बहुल ब्राह्मण तं ॥ ३८ ॥ त० तब त० उस गो० गोशाला में
अन्योन्य ए० ऐसा आ० कहते हैं जा० यावत् प० प्ररूपते हैं | + तैसे जा० यावत् जी० जीवित फल ब० बहुल माहण की शू मंखलि पुत्र को ब० बहुत ज०मनुष्य की अं०पास ए०यह है अर्थ सो० सुनकर णि० अवधारकर अ० इस रूप अ० चितवन जा० यावत् स० उत्पन्न हुवा जा० जैसे म० मेरा ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक स० श्रमण भः भगवन्त म० महावीर की इ० ऋद्धि जु० श्रुति कोल्लागस्स सष्णिवेमस्स बहिया बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमा इक्खइ जात्र परूवेइ धणे देवाणुपिया ! बहुले माहणे तंचेत्र जाव जीवियफले बहुलस्स माहणस्स बहुलस्स माहणस्स || ३८ ॥ एणं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहुजणस्स अंतियं एयम सोच्चा णिसम्म अयमेयारूवे अन्भतिथए जाब समुप्प जित्था ॥ जारिसियाणं मम धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स इट्ठी कि बहुल ब्राह्मण को धन्य है यावत् बहुल ब्राह्मण का जीवित सफल है. ॥ ३८ ॥ बहुत मनुष्यों की पास से ऐसा सुनने से पंखा पुत्र गोशाला को ऐसा अध्यवसाय हुवा कि मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की जैसी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य व पुरुषात्कार पराक्रम है वैसी ऋि वृति यावत् पराक्रम अन्य किसी भ्रमण ब्राह्मण को नहीं है. इसलिये निश्चय ही मेरे धर्माचार्य धर्मोप
444 पचरा शतक 6++++
२००१