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शब्दार्थ
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4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
चारोंबाजु म० मार्ग गवेषण क० करे ३० मेरा क० कहाँ मु. शब्द खु० छौंक ५० प्रवृत्ति अ. नहीं माप्त होते जे. जहां तं वणकर शाला ते. तहां उ० आकर सा• परिधान वस्त्र पा० उत्तरीय वस्त्र कुं० पात्र वा. पगरखी चि. चित्र फलक मा. ब्राह्मण को आ० देकर स. दाढीमूंछ मुं० मुंडन करके तं० वणकर शाला से १० नीकलकर णा० नालंदा बा० बाहिर म० मध्यमे णि नीकलकर जे. जहां को० कोल्लाक स० सन्निवेश ते. तहां उ० आया ॥३७॥ त• तव त• उस को० कोल्लाक स• सनि
च्छइत्ता साडियाओय पाडियाओय कुंडियाओय, वाणहाओय, चित्तफलगं च माहणे आयामेइ, आयामेइत्ता सउत्तरोटें मुंडं करेइ, करेइत्ता तंतुवायसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता णालंद बाहिरियं मझमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छइत्ता
जणेव कोल्लागसणिवेसे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता ॥ ३७ ॥ तएणं तस्स किसी स्थान नहीं मालूम पड़ने से पुनः तंतुवाय शाला में गया वहांपर पहिने हुवे वस्त्र, उतरे हुवे वस्त्र कुण्डिकादिक भाजन, पग की पगरखियों और चित्रित पटियों वगैरह सब ब्राह्मण को देकर दादी मुंछ वगैरह का मुंडन कर तंतुवायशाला में से नालंदिय पाडा के बाहिर मध्यबीच में होकर कोल्लाग सन्निवेश में आया. ॥३७॥ वहांपर कोल्लाग सनिवेश की बाहिर परस्पर लोकों ऐसा कहने लगे यावत:
...प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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