________________
*
शब्दार्थ गा० गाथापति के गिः गृह में अ० प्रवेश कीया त० तब से वह मु. सुदर्शन गा• गाथापति ण
विशेष स. सर्व का. रममय भो० भोजन से प० देवे से शेष तं० से जा. यावत् च. चौथा मा० मास क्षमण उ० अंगीकार कर वि. विचरता हूं ॥ ३२ ॥ ती० उस णा नालंदा वा० बाहिर अ. नजदीकर को० कोल्लास म० सनिवेश हो० था व. वर्णन युक्त ॥ ३३ ॥ त. तहां को० कोल्लास स. सनिवेश में ब० बहुल मा० माहण प०रहता था अ. ऋद्धिवंत जा. यावत् अ० अपरिभूत रि० ऋग्वेद जा. यावत् १ सुदंसणस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविढे तएणं से सुदंसणे गाहावई, णवरं ममं ।
सबकामगुणिएणं भोयणेणं पडिलाभेति सेसं तंचेव, जाव चउत्थं मासक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरामि ॥ ३२ ॥ तीसेणं णालिंदा बाहिरियाए अदूरसामंते एरणं
कोलाएणाम सण्णिवेसे होत्था, सण्णिवेस वण्णओ ॥ ३३ ॥ तत्थणं कोल्लाए कर विचरने लगा ॥ ३१ ॥ अहो गौतम ! तीसरे मासखमण के पारणे के दिन राजगृह नगर में सुदर्शन है शेठ के गृह में मैंने प्रवेश किया. सुदर्शन गाथापति मुझे इच्छानुसार सकल रसमय भोजन देकर संतुष्ट
हुवा शेष सब अधिकार विजय गाथापति जैसे जानना यावत् चौथा मामखमण कर के विचरने लगा. ॥३२॥ उस नालिंदा पाडा के बाहिर पास एक कोल्लाससनिवेश था. वह वर्णन युक्त था ॥ ३३ ॥ उस है। बोल्लास सनिवेश में बहुल नामक ब्राह्मण रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभूत था और ऋग्वेद यावत् +
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4
पमरहवा शतक
भावार्थ
48:08-
88