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शब्दार्थ
48 अनुवादक-पालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अ. फिरते आ० आनंद गा० गाथापति का गि० गृह में अ० प्रवेश कीया । ३. . . सब मा.11 आनंद गा० गाथापति म० मुझे ए० आता पा० देखकर ए ऐसे ज० जैसे वि. विजय का प०विशेष म० मुझे वि०विपुल ख. खाद्यावीदि से प० देऊंगा तु० तुष्ट से शेष तं तैसे जायावत् त• तीसरा मा०मासा खपण उ० अंगीकार कर वि. विचरा ॥ ३१॥ त. तब अ. मैं गो गौतम त० तीसरा मा. मास क्षमण पा० पारणे में तं० वणकर शाला से प० नीकलकर त० तैसे जा. यावत् अ. फिरते मु. सुदर्शन
जेणेव रायगिहे णयरे जाव अडमाणे आणंदस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविट्टे ॥३॥ तएणं से आणंदे गाहावई ममं एजमाणं पासइ पासइत्ता एवं जहेव विजयस्स, गवरं
ममं विउलाए खजगविहीए पडिलाभेस्सामीति तुटे सेसं तंचव जाव तच्चं मासक्ख. __ मणं उवसंपजित्ताणं विहरामि ॥ ३१ ॥ तएणं अहं गोयमा ! तचं मासक्खमणं
पारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिणिक्खमामि, पडिणिक्खमामित्ता तहेवे जाव अडमाबाहिर मध्यबीच में होकर गजगृह नगर में ऊंच नीच व मध्यकुल में फीरता हुवा आनंद गाथापति के ग्रह गया.॥ ३० ॥ आनंद गाथापति मुझे आता हुवा देखकर विजय गाथापति की तरह हष्ट तुष्ट हुवा।
और अपने आसन से उठकर सात आठ पांच सामने आया. वगैरह विजय गाथापति की तरह सब किया। विशेष में मुझे मक्कर की विधिवाला भोजन देकर संतुष्ट हुवा शेष पूर्ववत् यावत् तीसरा मासखमण अंगीकार
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amannaamananmanmannamainamaina ..प्रकाशक-राबाबहादुर काला मुखदवसहायजी ज्यालाप्रसादी *