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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
अर्थ को णो० नहीं आए आदर किया गो० नहीं प० अच्छा जाना तु शांत सं० रहा ॥ २८ ॥ त० तब अ० मैं गो० गौतमं रा० राजगृह ण० नगर से प० नीकलकर णा० नालंदा वा० बाह्य की म० मध्य से जे० जहां तं० वणकर शाला ते० तहां उ० आकर दो० दूसरा मा० मात क्षमणे उ० अंगीकार {कर वि० विचरा ॥ २९ ॥ त० तत्र अ मैं मा० मास क्षमण पा० पारणे में तं० वणकर सा० शाला से [प० नीकलकर णा० नालंदा वा० बाहिर म० मध्य से जे० जहां राः राजगृह ण० नगर जा यावत् एयम णो आढामि णो परिजाणामि, तुसिणीए संचिट्ठामि ॥ २८ ॥ तरणं अहं गोयमा ! रायगिहाओ णयराओ पडिणिक्खमामि २ त्ता, नालंदं बाहिरिय मज्झमज्झणं जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छामित्ता, दो मास क्स्वमणं “उवसंपज्जात्ताणं विहरामि ॥ २९ ॥ तरणं अहं मांसक्खमणपारण संसि तंतुवायसालाओ पडिणिक्खमामि पडिणिक्खमामित्ता णालंदं बाहिरिगं मज्झमज्झेणं. ॥ २७ ॥ अहो गौतम ! उस समय मैंने गौशाला के वचन का आदर किया नहीं; उन के वचन मैंने अच्छे जाने नहीं परंतु मौन रहा. ॥ २८ ॥ फीर अहो गौतम ! मैं राजगृह नगर में से नीकलकर नालंदिय [पाडा के बाहिर मध्यबीच में से नीकलता हुवा तंतुवाय शाला में आया और दूसरा मास खमण कर के रहने लगा. ॥ २९ ॥ मास खमण के पारण के दिन तंतुवाय शाला में से नीकल कर नालंदिय पाडा
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र
***+ परहवा शेतक