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मुनकर णिक अवधारकर स० उत्पन्न हुवा सं० संशय स० उत्पन्न हुवा को• कुतूहल जे. जहां वि०* विजय गा० ग थापति का गि गृह त. तहां उ० आकर वि० विजय गा• गाथापति के गि० गृह में व० वसुधारा की बु० वृष्टि द० दश अ० अर्घ व० वर्ण कु० कुसुम णि पडेहुए म० मुझे वि. विजय गा. गाथापति के गि० गृह से १० नीकला पा० देखकर ह. हृष्ट तु० तुष्ट जे० जहां म० मेरी अं० पास ते० तहां उ. आकर म मुझे ति० तीन वक्त आ० आवर्तन ५० प्रदक्षिणा क० करके म. मुझे वं. वंदनकर ण. नमस्कारकर ए. ऐसा व. बोला तु• तुम भं० भगवन् म मेरे ५० धर्माचार्य अ. मैं तु. तुमारा घ. धर्म अंतेवाती ॥ २७ ॥ तक तव अ० मैं गो• गौतम गो० गोशाला मं० मंखलिपुत्र का ए: इस
गाहावइस्स गीहसि वसुहारसि वुद्धि दसवण्णं कुसुमं णिवाडयं ममंचणं विजयस्स न गाहवइस्स गिहाओ पडिाणक्खममाणं पासइ, पासइत्ता हट्ठतु?, जेणेव मम अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवगच्छइत्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं करेइ, करेइत्ता ममं वंदइ णमंसइ, णमं इत्ता ममं एवं वयासी तुभेणं भंते ! ममं धम्मायरिया,
अहंणं तुब्भं धर मंतेवासी ॥ २७ ॥ तएणं अहं गोपमा ! गोतालस्स मखालिपुत्तरस भावार्थ
नीकलते हुवे देख कर हृष्ट तुष्ट हुया और मेरी पास आकर मुझे तीनवार हस्त जोडकर प्रदक्षिणा कर के 14वंदना नमस्कार करते हुवे बोला कि अहो भगवन् ! आप मेरे धर्माचार्य हो और मैं आप का धर्माशष्य हूँ .'
43 अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋपिना
* प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसाद मी.