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________________ Avvada शब्पा जीवित फ कल वि विनय गा• गाथापतिका ज० जिस गि गृह में तः तथारूप सा० माथु मा. साघुरूप को ५० देता हुवा इ० ये पं० पांच द० द्रव्य पा प्राप्त हुवे व द्रव्य वृष्टि जा. यावत् अ०ी दान घु० उद्घोषणा की ध० धन्य क० कृतार्थ क० कुन पुन्य क. कृन लक्षण, क. कीया लो. लोक ET. अच्छा प्राप्त मा० मनुष्य का ज. जन्म जी. जीवित फ० फल विजय गा० गायापति का ॥ २६ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला मं० मंखलि पुत्र व • बहुत मनुष्य अं० पास ए० यह अर्थ सो०१३ साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाइं पंचदिव्वाइं पाउब्भूयाई, तंजहा वसुधारावुट्टा जाब अहोदाणे घुट्टे २, धण्णेणं कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे कयाणं लोया सुलहे माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्य गाहावइस्स विजयस्स २ ॥२६॥ तएण से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णको ऊहल्ले जेणेव विजयस्स गाहावइस्स गिह तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता विजयस्सं प्रगट हुइ. इस से विजय गाथापति का जन्म धन्य, कृतार्थ, कृतपुन्यवाला कृतलक्षणवाला, इस लोक व। परलोक में शुभकलवाला व सफल है, ॥ २६ ॥ उस समय में बहुत मनुष्यों से ऐसी वार्ता सुनकर मंखलि पुत्र गोशालक को संशय यावत् कोतुहल उत्पन्न हुवा और विजय गाधापति के गृह आया. वहां विनय मायापति के मृह कन की वृष्टि पांच वर्णवाले पुष्प वगैरह पांच प्रकार की वस्तुओं व पृझे उस के गृह में । दंजयांग विवाह परणचि ( भगवती) सूत्र
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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