SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2022
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ wroominni - सब्दार्थन. नगर में सिं० श्रृंगाटक जा. यावत् प० रस्ते में बहुत ज. मनुष्य अ० अन्योन्य ए ऐसा आ.) कहते हैं जा० यावत् ए. ऐसा प. प्ररूपते हैं ध० धन्य दे० देवानप्रिय वि० विजय गा० गाथापति क. कृतार्थ दे. देवानुप्रिय वि० विजय गा० गाथापति क० कृतपुण्य दे. देवानुप्रिय वि० विजय गा. गाभापति क. कृतलक्षण दे० देवाननिय वि. विजय गा० गाथापति क. कीया लो० लोक दे. देव मिय वि. विजय गा८ गायापति का सु० अच्छा प्राप्त दे. देवानु प्रिय मा० मनुष्य के ज० जन्म जी. रायगिहे णयरे सिंघाडग जात्र पहेसु बहुजणोः अण्णमण्णस्स एव माइक्खइ. आवः एवं परूवेइ धण्णेणं देवाणुप्पिए ! विजए गाहावई, कयत्थेणं देवाणुप्पिए विजए। गाहावई, कयपुण्णणं देवाणुप्पिया ! विजए गाहावई, कयलक्खेणं देवाणुप्पिया ! विजए गाहावई, कयाणं लाया देवाणुप्पिया ! विजयस्स गाहावइस्स सुलद्धेणं देवाणु पिए !माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयंस्म गाहावइस्स, जस्सणं गिहंसि तहारूवे. भावार्थ उस समय राजगृह नगर के शृंगाटक यावत् राज्यमार्ग में परस्पर लोको ऐता कहने लगे यावत् प्ररूपने कि दंवानुप्रिय! विजय गाथापति को धन्य है, विजय गाथापति कृतार्थ, कृत पुण्यवाला व कृत लक्षण वाला है, विजय गाथापतिने इलोक व परलोक में शुभफल किये हुवे हैं, विजय गायापति का मनुष्य जन्म मफल दुचा, क्यों की तथारूप साधुओंको दान देने से उन के गृह में, पांच प्रकार की दीव्य वस्तुओं अनुवाद कंबालब्रह्मचारी मुनि श्री 'प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy