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बाब्दार्थी 4 मा गाथापति का ते- उस द द्रव्य शुद्ध से दा० देनेवाला मुः शुद्ध ५० लेनेवाला प० शुद्ध से ति
तीन विध ति० तीन करण मु० शुद्ध दा० दान से म० मुझे प० देता हुवा दे० देव आयुष्य णि२. बंधा* सं० संसार प० परत्त क० कीया गि० गृह में पं० पांच द्रव्य पा० प्राप्त हुवे व० द्रव्य दृष्टि द: दश अर्ध व० वर्ण वाले कुछ कुसुम णि वृष्टि हुइ चे०वस्त्र की उ० वृष्टिहुइ आ० बजावी दे० देवदुंदुभी अं० बीच में आ० आकाश में अ० अहो दा० दान त्ति ऐसा घु: उदूघोषणा की ॥ २५ ॥ त० तवं रा० राजगृह
इस्स तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धेणं पडिग्गहसुद्धेणं तिविहं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं मए पडिलाभिए समाणे. देवाउयाणिवई. संसारपरित्तीकए मिहंसिय से इमाई पंचदिब्वाई पाउब्भूया तंजहा वसुहाराबुट्ठा, दसवण्णे कुसुमे णिवातिते,. चेलुक्खेवेकए ।
आहयाओ देवदुंदुभीओ. अंतरात्रियणं आगासे अहोदाणे २. त्ति घुट्टे ॥ २.५॥ तएणं . में अशनादि दिये पीछे भी हर्षित हुवा. ॥ २४ ॥ तब ४२ दोष रहित द्रव्य शुद्ध, आशंसादिदोष रहित 80 | दाता शुद्ध और दूषण रहित होने से पात्र शुद्ध यों तीनों शुद्ध होने से तीन करन तीन योग से मुझे है।
शुद्ध दान देने में देवता का आयुष्य बांधते हुवे और संसार को परत्त करते हुवे विजय गाथापति के 3. गृह में पांच द्रव्य की वृष्टि हुइ. १ रत्नादि धन की वृष्टि २ पांच वर्ण के पुष्प की वृष्टि ३ वजारूप
ख. की वृष्टि ४ देव दुंदुभी ओर ५ आकाश में ' अहो दान: अहो दान' ऐसी उद्घोषणा ॥२५॥
+ पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 438
पनरहवा शतक
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