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शब्दार्थ
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#प्रकाशक
48 अनुवादक-वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
न० तब से वह वि०विजय गागाथापति म० मुझे ए० आता पा- देखकर ह० हृष्ट तुष्ट खि शीघ्र आ० आसन से अ० उठकर पा० सिंहासन मे प० खडा होकर ए०एक साडीका उ उत्तरासंग क. करके अं० अंजलि म. जोडकर ह. हस्त से म. मेरी स. सात अ० आठ ५० पांच अ० सामने आकर म. मुझे ति० तीनवक्त आर आवर्तन प. प्रदक्षिणा क. करके म० मुझे वं. वंदन करे ण. नमस्कार करे म०
विपुल अ. अशन पा० पान खा. खादिम सा. स्वादिम मे प. देऊंगा इ० ऐसा तु. हो हुवा ५० देते तु• तुष्ट हुवा ५० देकर तु• तुष्ट हुवा ॥ २४ ॥ त० तब तक उस वि. विजय
गाहावई ममं एजमागं पासइ २ त्ता हट्ट तुट्र खिप्पामेव आसणाओ अब्भट्रेड२ त्ता पादपीठाओ पच्चोरुभति २त्तापाययाओ उमुयइ २त्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ २ त्ता, अंजलिमउलियहत्थे ममं सत्तटुपयाई अणुगच्छइ २त्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ२ त्ता ममं बंदइ नमसइत्तार विउलेणं असणपाणखाइमसाइमणं पडिलाभिस्सामित्ति
तुट्टे पडिलाभेमाणे वितुढे पडिलाभितेवि तुट्टे, ॥२४॥ तएणं तस्स विजयस्स गाहावउतरकर, एक माडीवाला वस्त्रका उत्तरासन कर, और दोनों हस्त की अजली जोडकर सात आठ पवि मेरी मामने आया, और मुझे तीन बार हस्त जोडकर प्रदक्षिणा देकर, वंदना नमस्कार कर विपुल अशन पान खादिम स्मादिम देवेगें ऐमा विचार कर हर्षित हुवा, मुझे अशनादि देताहुवा हर्षित हुवा
जाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी-*
भावार्थ