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१९८९
पंचमांग विवाह पण्णचि ( भगवती ) मूत्र 428+
भाकरले. वणकर शाला के ए. एकविभाग में भं० पात्र णि. निक्षेष क. करके रा० राजगह नगर में उ. ऊंच णी नीव जा. यापत् अ. अन्यत्र क. कहांनी व. वनति अप्रास ती उत्त तंवणकर शाला की ए. एकदिशा में वा. वर्गकाल उ० रहा ज. ज. अ. में गो. ॥ २२ ॥ त. तर अ० मैं गो गौतन प्रथा मा पास क्षण पा० पारणा में तं. वणकर शाला में
. नीकलकर ना० नालिन्दना आहिरप मध्य जे. जहां रा० राजगाननगर उ• ऊंचणी नीच जा. यावत् अ. फोरते वि. विनय गा० गाथा पतिका गि गृह में अ. प्रवेश किया ॥ २३ ॥ __ एगदेसंसि वासावाम मुवागए, जत्थेवणं अहं गोयमा!!! २२ ॥ तएणं अहं गोपमा!
पढम मासक्खमणपारणलि तंतुवायसालाए पडिणिवखमामि, तंतुवाय सालाए पडिणिक्खमित्ता नालिंदा बाहिरिय मज्झमझेणं जेणेव रायगिहे णयरे उच्चणीय
जाव अडमाणे विजयस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविट्ठ ॥ २३ ॥ तएणं से विजए रहाथा वहां आया. ॥ २२ ॥ आ अहो गौनय ! प्राम मास खाग के पारण के दिन तंतुशाला में से नीकला और नालंदिय पाडा के बाहिर मध्यवीव मे होता हुवा राजगह नगर में ऊंच नीच व मध्यम कुल में भीक्षा के लिये फौरता हुवा विजय गाय पति के गृह मैंने प्रवेश किया ॥ २३ ॥ विजय गाथापति मुझे आता हुवा देखकर अनि हर्षित हुवा और शीघ अपने भासन से उठकर पादपीठिका से नीचे की
पत्ररहवा शतक 48488+.
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