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________________ शब्दार्थ + १९८८ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी आकर अ० यथा प० प्रतिरूप उ• आज्ञा उ० लेकर तं० वणकर शाला के ए० एकविभाग में वा० वर्षा काल उ० रहा त० तब अ मैं गो० गौतम ५० प्रथम मामाक्षमण उ० अंगीकार कर वि विचरता था १॥ २१ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला मं० मखालपत्र चित्र फ: फलक ह० हस्त में मं० भिक्षावृत्ति से अ० आत्मा को भा० भापता पु. पूर्वानुर्वि चचलता जा० यावत् दू० जाता जे०जहां रा० राज गृह न० नगर जे. जहां णा बालिन्दा बा० बाहिर का जे. जातं. वणकर शाला ते. तहां उ० उवसंपजित्ताणं विहरामि ॥ २१ ॥ तएणं से गोसाले मखलिपुत्ते चित्तफलग हत्थगए मंखत्तणणं अप्पाणं भावमाणे पुयाणपुर्विध चरमाण जाव दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे णयरे जेणेव णालिंदा बाहिरिया जेणेव तंतवायसाला तेणेव उवागच्छद उवागच्छइत्ता तंतुवायसालाए एगदेसि भंडाणिक्खवं करइ, करेइत्ता रायगिहे णयरे उच्चणीय जाव अण्णत्थकत्यवि वेसहिं अलभमाणे तीसेय तंतुवायसालाए.. अहो गौतम ! मैं वहां प्रथम मामस्वमण कर के रहा ॥ २१ ॥ फीर मखली पुत्र गौशाला हस्त में चित्रित पटिया लेकर भीक्षा मांगता हुवा ग्रामानुग्राम विचरता हुदा सजग नगर के नालिंदा पाडा की बाहिर नंतुवायशाला में आया. वहां आकर उसके एक विभाग में उसने अपने डोपहरण रख और राजगृह नगरके नीच व मध्यकुल में अन्यस्थान नहीं मीलने से उस ही संतुशाला के एक विभाग में कि जहां १ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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