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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
ए. एक दे० देवदृष्य आ• लेकर मुं• मुंड होकर आ गृहवास से अ० अनगार को प० प्रबजित हुवाई ॥ २० ॥ त० तब अ. मैं गो० गौतम ५० पहिला वा० वर्ष को अ० अर्ध माम क्षमण करता अ. अस्थिग्राम की णि निश्राय में प० प्रथम अ० वर्षा काल का वर्षा बाम उ रहा दोदरा का० वर्ष मा० मास क्षमण करता पु० पूर्वानुपूर्षि च० चलना गा ग्रामानुग्राम दू, जाता जे. जहां रा० राज गृह न० नगर जे० जहां ना० नालिन्दा की बा० बाहिर जे. जहां ते. वणकर शाला ते. तहां उ०
अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ॥ २० ॥ तएणं अहं गोयमा ! पढमं वासं अद्धमासं अदमासेणं खममाणे अट्ठियगामं णिस्साए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए दोच्चं वासं मासे मासेणं खममाणे पुवाणुपुर्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव नालिंदा बाहिरिया जेणेव तंतुवाय साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिहामि अहा २ तंतुवाय
सालाए एगदेससि वासावासं उवागए तएणं अहं गोयमा ! पढमं मासक्खमणं साधुपना अंगीकृत किया ॥२०॥ उस समय मैं अर्धामासखमण की तपस्या करता हुवा अस्थिक ग्राम की नेश्राय से पहिला अंतरवास अर्थात वर्षाकाल रहने आया. दसरे वर्ष में मासखमण की तपश्चर्या ? करके पूर्वानुपूर्वि विचरता हुवा व ग्रामानुग्राम चलता हुवा राजगृह नगर के नालिदा पाडा के बाहिर तंतुवाय शाला में यथाप्रतिरूप अवग्रह याच कर उस के एक विभाग में वर्षाकाल के लिये रहा.
पत्ररहवा शतक 8.
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भावार्थ
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