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शब्दाथ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
करते है गो गोशाला ॥१८॥त ब से वह गो० गोशाला दा० पुत्र उ० रहित बा. बालभाव है वि. विज्ञान १० परिणत ज. यौवन ग. गपन को प. श हर का नत्या चि चित्र का पटिया क. करके चि.चित्र फ० पटिया लेकर मंभिक्षावत्त अ० आत्मा को भा० भावता वि. विचरता है ॥ १९ ॥ ते. उस काल ते. उस समय में अ मैं गो० गौतम ती- तीस वा वर्ष गृहस्थावास में व० रहकर अ० माता पिता दे०देवलोक को ग प्राप्त होते ए०ऐसा ज जैसे भा भावना में पियरो णामधेनं करेंति गोसालेति ॥ १८ ॥ तएणं से गोसाले दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णाय परिणयमेत्ते जव्वणगमणुप्पत्ते सयमेव पाडिएकं चित्तफलग करइ, करेइत्ता चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥१९॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता
अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं. एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता का गौशाला में हुआथा. उस दिन से उस के मातापिता गोशाला कहने लगे. ॥१८॥ अब वह गौशाला बालभाव से मुक्त होकर युवावस्था को प्राप्त हुआ तब स्वयमेव एक चित्रित पटिया लेकर भीक्षा मांगता हुवाई फीरने लगा ॥ १९ ॥ उस काल उस समय में मैंने तीस वर्षापर्यंत गृहवास में रहकर मातपिता देवलोक गये पीछे वगैरह जैसे भावना शतक में कहा वैसे यावत् एक देवदृष्य सहित मुडिन बनकर गृहवास में से है
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
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