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शब्दार्थ 4 . तहां स सरवण स. सन्निवेश में गो. गोबहुल मा० माहण प० रहता था अ. ऋद्धिपंत जा.
यावत् अ. अपरिभूत रि. ऋग्वेद जा. यावत् मु० मुपरिनिष्टित हो० था ॥ १५ ॥ तक उस गो। गोबहुल को गो० गोशाला हो० थी ॥१६॥त. तब से वह मं० मखलि मं० भिक्षुक अ० एकदाई भ० भद्रा भा. भार्या गुः गर्भवती स. साथ चि० चित्र फ० पटिया ह. हस्त में मं० भिक्षावृत्ति से अ030 आत्मा को भा. भावता पु० अनुक्रप से च० चलता गा० ग्रामान्यांम दू० जाता जे० जहां स० सरवण
तत्थणं सरवणे सण्णिवेसे गोबहुले णामं माहणे परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभए ।
रिउव्वेय जाव सुपरिणिट्टिएयावि होत्था ॥ १५ ॥ तस्सणं गोबहुलस्स माहणस्स है गोसालायावि होत्था ॥ १६ ॥ तएणं से मंखलिमखणामं अण्णयाकयाई भद्दाए है भारियाए गुम्विणीए साई चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुन्वाणु
पुल्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे जणेव सरवणे साण्णवेसे जेणेव गोबहुलस्स : में मोबहुल नामका ब्राह्मण रहता था वह ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूत था. ऋग्वेद यावत् मुपरिनिष्टित था । ॥ १५॥ उस गोबहुल ब्राह्मण को गायों रहने की शाला ( ठाण) थी ॥१६॥ एकदा मखली।
नामक मंख अपनी गर्भवती स्त्री साथ हस्त में चित्रित काष्ट के टुकडे से भीक्षा याचता हुवा ग्रामानु ग्राम है। *फीरता हुवा सरवण सनिवेश में गोचहुल ब्रह्मण की गोशाला में आया. वहां आकर गोबहुल ब्रह्मण की ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
पत्ररहवा शतक
भावाथ
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