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शब्दार्थ जा. यावत् जिजिन शब्द ५०मोलसा वि. विचरता है से०वह क कसे ए. यह भ० भगवन् ए. ऐसा
इच्छता हूं भ० भगवन् गो० गोशाला मं० खलि पुत्र का उ० पहिले से ५० संबंध ५० कहाया है ॥ ११ ॥ गो. गौतमादि स० श्रमण भ० भगवन्त म० महाधीर भ. भगवान् गो० गौतम को ए. ऐसा
• बोले जं. जो गो गौतम बहुत ज०मनुष्य अ० अन्योन्य आ०कहते हैं गोगोशाला म०मखलि पुत्र जि० जिन जि. जिन प्रलापी जा० यावत् प० बोलते वि. विचरते हैं तं० वह मि० मिथ्या अ. मैं गो. है। समाणे विहरइ, से कहमेयं भंते ! एवं ? इच्छामिणं भंते ! गोसालस्स मंस्खलि
पुत्तस्स उट्ठाणपरियाणियं परिकाहियं ? ॥ ११ ॥ गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी जंगं गोयमा ! से बहुजणे अण्णमण्णस्म एव माइक्खइ४
एवं खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाब पगासमाणे विहरइ,तणं मिच्छी भयवन् ! यह किस तरह है ? मंबलीपुत्र गोशाला का जन्म से लगाकर आजतक सब संबंध सुनने
को मैं इच्छता हूं ॥ ११ ॥ श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने गौतम स्वामी को ऐसा कहा कि अहो 3 गौतम! तुपने बहुत मनुष्यों से ऐसा मुना है कि मंखलि पुत्र गोशाला जिन, जिन प्रलापी धावत् 13
विचरता है यह मिथ्या है. मैं इस को ऐसा कहता हूं यावत् भरूपता हूँ कि मखलिपुत्र गोशालामा
(भगवती) पंचमान बहाय पण्णति
वा