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शब्दार्थ
१९८०
मुनि श्री अमोलक * अनुवादक-बालब्रह्मचारी
ए. ऐसा आ० कहते हैं ए. ऐसे दें. देवाननिय गोड गोशाला मं० मैखलि पुत्र जि० जिन जि जिन प्रलापी जा०. यावत् प० बोलता वि० विचरता है से वह क• कैसें ए. यह. १०. माने एक ऐसे त० तब भ० भगवन्त. गो. गौतम ब०. बहुत मनुष्य की अं० पास ए० यह अर्थ सो० सुनकर णि अवधार कर जा० यावत् जा०. श्रद्धा उत्पन्न हुई जा. यावत् भ० भक्तपान ५०. बतावे ना० यावत् । ५० पर्युपासना करने ए. ऐसा व० बोले ए. ऐसे ख० निश्चय अ० मैं भं० भगवन् छ. छउ तं०. तैसे
ण्णस्स एव माइक्खइ ४ एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासमाणे विहरइ, से कहमेयं मण्णे एवं ? ॥ तएणं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमद्रं सोचा णिसम्म जाव जाय. सड़े जाव. भत्तपाणं पडिदंसेइ
जाव पज्जुवासमाणे एवं क्यासी एवं खलु अहं भंते! छटुं तंचव जाव जिणसई पगासहै. यह ऐसा कैसे माना जाने ? इस समय में भगवंत गौतम बहुत. मनुष्यों से ऐमा सुनकर अवधार, कर यावत् संदेह उत्पन्न हुवा यावत् भक्त पान बतलाकर यावत् पर्युपासना करते हुवे ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! छठ के पारने के लिये श्रावस्ती नगरी में फीरता हुवा बहुत लोकोंको परस्पर ऐसा वार्तालाप करते हुवे मैंने मुने कि मखली. पुत्र गोशाला कहता है कि मैं जिन हूं इस प्रकार प्रलाप. करता हुवा विचरता है. अहो ।
शंक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ: