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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
4983- पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती
|| २० नारकी में भगवन् ने० नरक असे सर्व उ० उपजे स० सर्व से प्रथम अ आठ दंडक त मे अ अ में अ० उ० दंडक भा० कहना णः विशेष जज दे० देश से दे देश उ० उपजे त० तहां अ० अर्ध से अ० अर्थ उ० उपजे भार कहना एक ऐसे ना० नानाप्रकार स० सर्व मो० सोलह आहारेइ, एएणं अभिलावेणं उबवण्णे उव्वद्वेवि नेयव्वं ॥ ५ ॥ नेरइणं भंते ! नेरइएस उववजमाणे किं अद्वेणं अहं उवबजइ, अहेणं सव्वं उववज्जइ, सव्वेणं अहं उजड़, सव्वेण सव्वं उववज्जइ ? जहापढमिल्लेणं अट्ठदंडगा तहा अणवि अटू दंडगा माणिव्वा णवरं जहिं दसेणं देस उववज्जइ तहिं अद्वेणं अहं उववजइतिसे सब का आहार करे || ५ || अहो भगवन् ! नरक में उत्पन्न होता जीव क्या अपना अर्ध से अर्ध नारकीपने उत्पन्न होता है, अर्थ से सर्व उत्पन्न होता है, सर्व से अर्थ उत्पन्न होता है, सर्व से सर्व उत्पन्न होता है ? अहां गौतम ! जैसे पहिले देश के आठ दंडक कडे बैसे ही यहां अर्ध के आठ दंडक जानना इतनी भिन्नता कि देश के स्थान में यहां पर अर्ध कहना. * ऐसे सब मीलकर सोलह दंडक हने ॥ ६ ॥ उत्पन्न * यहां कोई प्रश्न करे कि देश व अर्धमें क्या भिन्नता है ? देशके थोडे, बहुत ऐसे अनेक भेद होते हैं, और अर्धके दो विभागही होते हैं
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में
अभिलाष से उ० उत्पन्न हवा उचवायें ने जानना || उपजता किं० क्या अ अर्थ मे अ अर्थ उ० उपजे अ अर्थ उपजे सर्व मे स सर्व उपजे ज जैसे प
२००० पहिला शतकका सातवा उद्देशा 08