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शब्दार्थ + मखलि पुत्र ते उस अ० अष्टांग म० महानिमित्त का के० कोइ एक उ० उपदेश से सा० श्रावस्ती :
१० नगरी में अ० अजिन जि. जिन प्रलापी अ. अरिहंत नहीं अ० अरिहंत प्रलापी अ० अकेवली के. केवली प्रलापी अ० असर्वज्ञ स. सर्वज्ञ प्रलापी अ० जिन नहीं जि० जिन शब्द प० बोलता वि. विचरता है ॥८॥त. तब सा० श्रावस्ती ण. नगरी के सिं० श्रृंगादक जा. यावत् प० रस्ते में व. बहु मनुष्य अ० अन्योन्य एक ऐसा आ० कहते हैं जा. यावत् प० प्ररूपते हैं ए. ऐसे ख० खलु दे. प्रिय गो० गोशाला में मंखलिपुत्र जि० जिन जि० जिन प्रलापी जा. यावत् ५० बोलता वि.
तेणं अटुंगस्स महाणिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए णयरीए अजिणे जिणप्पलावी, अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली केवली पलावी, असव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसई पगासमाणे विहरइ ॥ ८ ॥ तएणं सावत्थीए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एव माइक्खइ, जाव एवं परूवेइ
एवं खलु देवाणुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिगप्पलावी जाव पगासमाणे भावार्थ से किसी एक उपदेश से श्रावस्ती नगरी में जिन नहीं होते हुवे जिन, अर्हन नहीं होते हुवे अर्हन, केवली.
नहीं होते हुवे केवली, और सर्वज्ञ नहीं होनेपर सर्वज्ञ हूं ऐमा प्रलाप करने लगा ॥८॥ उस समयमें श्रावस्ती , नगरी में अंबाटक याक्त राजमार्ग में बहत मनुष्य परस्पर ऐसा कहने यावत् प्ररूपने लगे कि खली पुत्र
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
.मकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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भारी में श्रृंबाटक यात्