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शब्दार्थ अ. आठ प्रकार का पु० पूर्व गत म० मार्गदर्शन स० अपनी म. मतिदर्शन से णि उद्धरे है।
गोशाला मं० पखलि पुत्र को उ० स्थापन करे ॥६॥३० तर गो० गोशाला मं० मंखलि पुत्र उस अ. अष्टांग म. महानिमित्त का के० कोइएक उ० उपदेश मात्र से स० सर्व पा० प्राण भू.
जी0 जीव स. सत्व का इ० इस छ० छ अ०व्यभिचार रहीत बा० प्रश्न वा० कहे तं. वह ज. जलालाभ अ० अलाभ सु० मुख दु० दुःख जी० जीवित म० मरण ॥ ७॥ त० तब गो० गोशाला
साचरा अट्ठविहं पुव्वगयं मग्गदसमं सएहिं मइदंसणेहिं णिज्जूहिति, सएहिं २ तित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उबट्टाइंस ॥ ६ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सब्बोस पाणाणं, सव्वेसि भयाणं, सब्बोसि जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं, इमाई छ अणइक्कमणिज्जाई वागरणाई वागरइ,
संजहा-लाभं अलाभं सुहं दुखं जीवियं मरणं ॥ ७ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते भावार्थ
अपनी २ बुद्धि पूर्वक पूर्वगत लक्षण से श्रुत पर्याय में से नीकलकर मंखलीपुत्र गोशाला का आश्रय ग्रहण किया. अर्थात् उन के शिष्य बने ॥ ६ ॥ अब वह गोशाला उस अष्टांग महा निमित्त के उपदेश मात्र से सब प्राणि, भूत, जीव व सत्व छ कृत्य उल्लंघ नहीं सकते हैं ऐसा कहने लगा. जिन के नाम लाभ, असाम, मुख, दुःख जीवित और मरण ॥ ७॥ अब वह मखली पुत्र गोशाला उक्त अष्टांग महा निमित्त में।
dan पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) स्त्र
489 पबरहवा शतक+
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