________________
*
शब्दार्थ अ० अपराभून आ० आजीविक म० मत में ल० अर्थ प्राप्त कीया है ग० अर्थ ग्रहण कीया है पु० अर्थः ।
पुछा है वि० अर्थ निश्चय कीया है अ. अस्थि मि. मिंज पे० प्रेम से रक्त न० आयुष्यवन्त श्रमण आ० 100 भाजीविक मत में अ० अर्थ अ. यह अर्थ ५० परम अर्थ से० शेष अ. अनर्थ आ. आजीविक मत में अ० आत्मा को भा० भावती वि• विचरती है ॥ ३ ॥ ते० उस काल ते. उस समय में गो० गोशाला 3
• मेखली पुत्र च० चौवीस वा० वर्ष की प० पर्याय से हा. हालाहला कुं• कुंभकारिणी की कु०१ __ यसि लट्ठा गहियट्ठा, पुच्छियट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अट्टिमिंज पेमाणुरागरत्ता, अयमाउसो ! आजीविय समए अटे अयमढे परमढे, सेसे अणद्वेत्ति ॥ आजीविय समएणं अप्ाणं भावेमाणी विहरइ ॥ ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं गोसाले' मंखलिपुत्ते
चउर्वासवास परियाए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघ संपरिमत में प्ररूपित सिद्धांतों को उसने प्राप्त किया था, रल की तक, सामादिया था, कूकर निश्चय किया था, उस की हड्डी व हड्डियों की मिजियों प्रेमानुराग से रक्त बनी हुई था. ध चर्चा के प्रसंग वह यही कहती
थी कि अहो आयुष्मन् ! आजीविक के शास्त्रों प्रयोजन मय हैं, वेही परमार्थ सुख के कारणभूत हैं, 13 और शेष सब अनर्थ के हेतुभूत है. इस तरह आजीविक समय में स्वतः को भावती [विचारती ] हुइ
रहती थी॥३॥ उस काल उस समय में मंखलिपुत्र गोशाला चौवीस वर्ष पर्यंत पर्याय पालकर हालाहला
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
4380865 पत्ररहवा शतक
48*