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________________ पिजी ॥पञ्चदशशतकम् ॥ शब्दार्थ ण. नमस्कार सु० श्रुत दे० देवता भ० भगवती को ते. उस काल उ० उस समय में सा. श्रावस्ती इण० नगरी हो. थी व० वर्णन युक्त ॥ १ ॥ ती० उस साल श्रावस्ती ण नगरी की उ० ईशान कौन में को० कोष्टक चे• उद्यान हो० था व० वर्णन युक्त ॥ २॥ त० तहां सा० श्रावस्ती न. नगरी में हा० हालाहला कुं० कुंभकारिणी आ० आजीविक उ० उपासिका ५० रहती है अ० ऋद्धिवन्त जा. यावत् णमो सुअदेवयाए भगवईए ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी णामं णयरी होत्था, वपणओ ॥ १ ॥ तीसेणं सावत्थीए णयरीए उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए तत्थणं कोट्टए णामं चेइए होत्था, वण्णओ ॥ २ ॥ तत्थणं सावत्थीए णयरीए हालाहला णाम कुंभकारी आजीविय उवासिया परिवसइ, अड्डा जाव अपरिभूया ॥ आजीवियसमभावार्थ प्रथम मंगलाचरण निमित्त श्रुत देवता को नमस्कार करके कहते हैं कि चौदहवे शतक में केवली रत्नप्रभादि वस्तु जाने. उस का आत्म संबंधी परिज्ञान श्री श्रमण भगवन्त महावीरने गौतम के लिये प्रगट किया. उस काल उस समय में श्रावस्ती नगरी थी. वह चंपा नगरी जैसी वर्णन योग्य थी ॥१॥ उस कश्रावस्ती नगरी के ईशान कौन में कोष्टक नाम का उद्यान था ॥२॥ उस श्रावस्ती नगरी में हालाहला नाम की कुंभकारिणी आजीविक मत की उपासिका थी. वद्द ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूत थी. आजीविका ब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक mmomainamainamainamainamamana प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* nam
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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