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सूत्र
भावार्थ
परकमे, सिद्धेणं अणुट्ठाणे जात्र अपुरिसक्कार परक्कमे से तेजद्वेणं जात्र जो वागरेजवा ॥ ३ ॥ केवलीणं भंते ! उम्मिसेजवा निम्मिसेज्जवा ? हंता गोयमा ! उम्मिसेज्जया णिम्मिसेजवा; एवं चैव ॥ एवं आउट्टेजवा पसारेजवा एवं ठाणंवा सेजवा णिसीहियंत्रा वेज्जा ॥ ४ ॥ केवलीणं भंते ! इमं रथणप्पभं पुढविं रयणप्पभ पुढवीत जाणइ पासइ ? हंता गोयमा ! जाणइ पासइ ॥ जहाणं भंते ! केवली इमं श्यणप्पभ्रं पुढविं रयणप्पभ पुढवीति जाणइ पासइ, तहाणं सिद्धेवि इमं रयणप्पभ्रं पुढारणपभ पुढवीत जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ । केवलीणं भंते! मक्कपर्भ पुढर्वि सकरप्पभ पुढवीति जाणइ पासइ ? एवं चेव ॥ एवं जात्र अहे सत्तमं ॥ { नहीं बोलते हैं ? अहो गौतम ! केवली को उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषात्कार व पराक्रम है और सिद्ध को उत्थान यावत् पुरुषास्कार पराक्रम नहीं है इस से अहो गौतम ! वे नहीं बोलते हैं ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! क्या केवली मेषोन्मेष करे ? हां गौतम ! केवली मेषेोन्मेष करे वगैरह सत्र पूर्वोक्त
{ जैसे कहना. ऐसे ही हस्त पावादि का संकुचित, प्रसारण, कायोत्सर्ग, शैय्या व ध्यान का जानना ॥ ४ ॥ { अहो भगवन् ! केवली रत्नप्रभा पृथ्वी को क्या रत्नप्रभा पृथ्वी जाने देखे ? हां गौतम ! जाने देखे. अहो भगवन् ! जैसे केवली रत्नप्रभा पृथ्वी को रत्नप्रभा पृथ्वी जाने देखे वैसे ही सिद्ध क्या रत्नप्रभा पृथ्वी को
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
● की शर्कराजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
१९७२