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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
तेयलेस्स वीईवयइ, दसमास परियाए समणे जिग्गंथे आणयपाणयआरणन्चुयाणे देवाणं, एक्कारसमास परियाए समणे णिग्गंथे गेवेजग देवाणं, बारसमास परियाए समणे णिग्गंथे अणुत्तरोक्वाइयाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ, तेणपरं सुक्के सुधाभिजाए भवित्ता, तओ पच्छा सिज्झइ जाव अंतंकरेइ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ चउद्दसम सयस्सय णवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १४ ॥ ९॥
. केवलीणं भंते ! छउमत्थं जाणइ पासई ? हंता जाणइ पासइ ॥ ॥ जहाणं
भंते ! केवली छउमत्थं जाणइ पासइ तहाणं सिद्धेवि जाणइ पासइ ? हंता जाणइ । पपातिक देवों की तेजोलेश्या को अतिक्रमे; फीर आगे शुक्ल शुक्लाभिजात बनकर सीझे, बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे. अहो भगवन ! आप के वचन सत्य हैं. यह चौदहवा शतक का नववा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १४ ॥ ९ ॥ है नववे उद्देशे में शुक्लपना कहा और इमी से केवली प्रभृति अर्थ प्रतिवद्ध दशवा उद्देशा कहते हैं. अहो भगवन् ! क्या केवली छमस्थ को जाने देख ? हां गौतम ! केवली छमस्थ को जाने देख. अहो भगवन् ! जैसे केवली छमस्थ को जाने देखे वैसे ही क्या सिद्ध छद्मस्थ को जाने देखे ? हां सिद् भी केवली
भकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ