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भावार्थ
१० अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता जाव णमंसित्ता, एवं वयासी किमिदं भंते ! सूरिए किमिदं भंते ! सूरियस्स अट्ठे ? गोयमा ! सुभे सूरिए सुभे सूरियस्स अट्टे ॥ किमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं सरियस्स पभा ? एवं चेव ॥ एवं छाया, एवं लेस्सा ॥ ६ ॥ जेइमे. अज्जत्तए समणा णिग्गंथा विहरंति, एएणं कस्स तेउलेस्सं वीईवयइ ? गोयमा ! मास परियाए समणे जिग्गंथे वाणमंतराणं. देवाणं
तेउलेस्सं बीईवयइ; दुमास पस्यिाए समणे णिग्गंथे असुरिंदवजियाणं, भवणवासीणं देवाणं. यह सूर्य क्या है और सूर्य से क्या प्रयोजन है ? अहो गौतम ! सूर्य का विमान पृथ्वीकायिक जीवों के आतापना नामकर्म की पुण्य प्रकृति से प्रसता है इस से शुभ स्वरूप सूर्य है सूर्य का प्रयोजन भी शुभ है. अहो भगवन् ! सूर्य क्या है. और सूर्य की प्रभा क्या है ?. अहो गौतम ! शुभ स्वरूप सूर्य है और शुभ स्वरूप सूर्य की प्रभा है. ऐसे ही छाया व लेश्या का जानना. ॥ ६ ॥ अब इस को प्रकारान्तर से
! जो वर्तमान काल पने श्रमण निर्ग्रन्थ विचरते हैं इस में किसकी प्रशस्त तेजो लेच्या अतिक्रमे ? अहो गौतम ! जो एक मास की पर्याय को धारन करते हैं वे वाणव्यतर देवता की तेजो लेश्या को अतिक्रमते हैं अर्थात् वाणव्यंतर के मुख से अधिक सुख के भोक्ता बनते हैं, की पर्याय, वाले श्रमण निर्ग्रन्थ असुरेन्द्र छोडकर भवनपति देवों की, लेश्या को अतिक्रमते हैं.. अर्थात्
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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