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अणिट्ठा पोग्गला, जहा. अत्ता भणिया एवं इट्ठावि, कंतावि, पियावि, मणुण्णावि, भाणियवा. एवं पंचदंडगा ॥ ४ ॥ देवेणं भंते ! महिदिए जाव महेसक्खे स्वसहस्सं विउव्वित्ता पभू भासासहस्सं भासित्तए ? हंता पभू ॥ साणं भंते ! किं एगाभासा भासासहस्सं ? गोयमा ! एगाणं सा भासा णो खल तं भासासहस्सं ॥५॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे अचिरोग्गतं बालसूरियं जासुमणकुसुम
पुंजप्पगासं लोहितगं पासइ पासइस्ता जायसढे जाव समुपण्ण कोउहल्ले जेणेव समणे भावार्थ | अहो गौतम ! इष्ट पुद्गल नहीं हैं परंतु अनिष्ट पुद्गल हैं. वगैरह जैसे आत्मा [दुःख रहित ] पुद्गलों जैसे
कहना. और ऐसे ही इष्ट कान्त. प्रिय, मनोज्ञ यों पांच दंडक कहना ॥४॥ अहो भगवन ! महर्टि यावत् महा सुखवाला देव सहस्र रूप का वैक्रेय करके क्या सहस्र भाषा बोलने में समर्थ होता है? हां गौतम! वह समर्थ हो सकता है. अहो भगवन् ! क्या वह एक भाषा बोलता है या सहस्र भाषा बोलता है ? अहो गौतम! एक भाषा बोलता है परंतु सहस्र भाषा नहीं बोलता है क्यों की एक जीव को एक उपयोग होता है ॥५॥ उस काल उस समय में उदित होता हुवा बाल सूर्य को कुमुद के कुसुम समान लाल
रंग का देख कर भगवंत श्री गौतम स्वामी को प्रश्न पुछने की श्रद्धा यावत् कतुहल उत्पन्न हुवा और 1* श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास जाकर उन को वंदना नमस्कार कर के ऐसा बोले कि अहो भगवन्
2201 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4
चउदहवा शतक का नवा उद्देशा
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