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भावार्थ
4.8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मान श्री अमोलक ऋषिजी
ओभासंति ४ ॥ २ ॥ णेरइयाणं भंते ! कि अत्ता पोग्गला अणता पोग्गला ? गोयमा ! णो अत्ता पोग्गला अणत्ता पोग्गला ॥ असुरर्कुमाराणं भंते ! किं अत्ता पोग्गला अणता पोग्गला?गोयमा! अत्ता पोग्गलाणो अणत्ता पोग्गला, एवं जाव थाणिय कुमाराणं । पुढवी काइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! अत्तावि पोग्गला अणत्तावि पोग्गला, एवं जाव मणुस्साणं ॥ वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा असुर कुमाराणं ॥३॥
णेरइयाणं भंते ! किं इट्ठा पोग्गला आणिट्ठा पोग्गला ? गोयमा ! णो इट्ठा पोग्गला सरूपी कर्म लेश्यावाले पुद्गल प्रकाशते हैं ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को क्या दुःख रहित करे वैसे पुद्गल हैं या दुःख रहित न करे वैसे पुद्गल हैं ? अहो गौतम ! नारकी को दुःख कारक पुद्गलों हैं परंतु दुःख रहित करे वैते पुद्गलों नहीं हैं. अहो भगवन् ! असुरकुमार को क्या दुःख कारक पुद्गलों हैं या दुःख नहीं करे वैसे पुद्गलों हैं ? अहो गौतम ! दुःख से रहित करे वैप्से पुद्गलों हैं परंतु दुःख कारक पुद्गलों नहीं हैं. ऐसे ही स्थनित कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वीकाया को क्या दुःख रहित पुद्गलों हैं या दुःख भी सहित पुद्गलों हैं ? अहो गौतम ! दुःख रहित व दुःख साहेत ऐसे दोनों पुद्गल रहे हुवे हैं. ऐसे ही शेष चार स्थावर, लीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य का जानना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का असुरकुमार जैसे कहना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को क्या इष्ट पुद्गल या अनिष्ट पुद्गल हैं ?
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *