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(भगवती ) सूत्र <228
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सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ पासइ ? हंता गोयमा ! अणगारेणं भावियप्पा अप्पणो जाव पासइ ॥ १ ॥ आत्थिणं भंते ! सरूविं सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासंति ४ ? हंता आत्थि ॥ कयरे भंते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासंति जाब पभासंति ? गोयमा ! जाई इमाओ चंदिम सूरियाणं देवाणं विमाणेहिंतो लेस्साओ
वहिया आभिनिस्सडओ पभाति एएणं गोयमा ! ते संरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला इस का कथन नववे उद्देशे में कहते हैं. अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार छद्मस्थपना से अपने कर्म संबंधी कृष्णादि लेश्या को सुक्ष्म भाव से ज्ञान से जाने नहीं व दर्शन से देख नहीं और उसेही पुनः
जीव के शरीर कर्म लेश्या सहित क्या जाने देख? हां गौतम ! भावितात्मा साधु जाने देखे ॥१॥ #अहो भगवन् ! वर्णादि सहित स्वरूपी कर्म लेश्या क्या प्रकाशती है ? हां गौलम ! प्रकाश करती है."
अहो भगवन् ! कितने स्वरूपी उदारिक शरीरी जीव के कर्म लेश्यावाले पुद्गल प्रकाशते हैं ? अहो गौतम ! चंद्र सूर्य के विमान से जो लेश्यो समुह बाहिर नीकला वह प्रकाश करे. अहो गौतम ! इस से १ १ यद्यपि इन में कर्म लेश्या नहीं है परंतु चंद्र सूर्य के विमान में पृथ्वीकाय रूप सचेतनपना रहा हुवा है उस में से है 5 नीकलने के कारन से कर्म लेश्या ग्रहण की है.
चउदहवा शतक का नववा उद्दशा
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