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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4884
डाले ॥ ९ ॥ सरल शब्दार्थ. .
छेदं पुण करेंति, एसुहमं चणं पक्खिवेजा ॥ ९॥ अत्थिणं भंते ! जंभया देवा ? हंता अत्थि ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंभया देवा जंभया देवा ? गोयमा ! जंभगाणं देवा णिच्चं पमुदित पक्कीलिया कंदप्परतिमोहण सीला, जेणं ते देवे कुछ पासेज्जा, सेणं महंतं अयसं पाउणेज्जा, जेणं ते देवे तुट्टे पासेज्जा सेणं महंतं जसं पाउणेजा, से तेण?णं गायमा जंभगा देवा ॥ कइविहाणं भंते ! जंभगा
देवा पण्णत्ता ? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता, तंजहा-अण्णजंभगा, पाणथंभगा, सूक्ष्म क्रिया करने में बहुत कुशल होता है ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! क्या जूभक देव हैं ? हां गौतम ! हैं. अहो भगवन् ! किम कारन से ऐसा कहा गया है कि जंभक देव हैं ? अहो गौतम ! जंभक देव नित्य प्रमुदित, हर्षवंत, क्रीडा सहित, केली सहित, व मोहन स्वभाववाले हैं. जिस को वे क्रुद्ध होकर देख उस को बहुत अनर्थ करे. और जिस को तुष्ट होकर देखे उस को यश प्राप्त करावे. अहो गौतम कारन से जुंभक देव कहाये गये हैं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! जुंभक देव के कितने भेद कहे हैं ? अहो, गौतम ! जुंभक देव के दश भेद कहे हैं. अन्न मुंभक, पान मुंभक, वस्त्र जंभक, लयन जुंभक, शयन जूं-१ ।
चउदहवा शतकका आठवा उद्देशा
भावार्थ
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