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शब्दाथ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी ।
उववाइ में जा पावत् आ. आराधक ॥६॥ब. बहुत ज. मनुष्य अ० अन्योन्य आ. कहते हैं 101 अंबड प० परिव्राजक के. कपिलपुर ण. नगर में घ० गृहशत ज० जैसै उ० उबवाइ में अ० अम्बड व.. वक्तव्यता जा. यावत् द. दृढ प्रतिज्ञ अं० अंत करेगा ॥ ७॥ अ० है भं. भगवन् अ० अव्यावाध दे० देव इं. हां अ० है से. वह के. कैमे भं. भगवन् ए. ऐसा बु. कहा जाता है अ० अव्यावाध दे०१ - इए जाव आराहगा ॥ ६ ॥ बहुजणणं भंते.! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ ४ एवं
खलु अम्मडे परिव्वायगे कपिल्लपुरे णयरे घरसए एवं जहा उववाइए अम्मडवत्तव्वया । जाव दढपइण्णो अंतं काहिति ॥ ७ ॥ अत्थिणं भंते ! अव्वाबाहा देवा ? हंता
अस्थि ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अव्वावाहा देवा ? अव्वावाहा देवा गोयमा ! पूर्वक अनशन कर छठे देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुए. यावत् आराधक जानना ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! कितने लोक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं कि अम्बड परिव्राजक कपिलपुर नगर में पारणे के दिन सो घर में भोजन करता है तो यह कथन किस प्रकार है ? अहो गौतम! यह कथन सत्य है. उन को अवधि ज्ञान व वैक्रेय लब्धि प्राप्त हुई है जिस से ऐसा करता है. यावत् वह भी महाविदेह क्षेत्र में दृहपतिज्ञी कुमार जैसे कर्म क्षय करके सीझेगा, बुझेगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा. अम्बड परिव्राजक और इन के सात सो शिष्यों का उववाइजी सूत्र में बहुत विस्तार पूर्वक कथन किया है ॥७॥ अहो*
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
आवार्थ
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