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शब्दार्थ
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488 पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 88
यावत् को कोले के अवसर में का० काल कर के जी० यावत् क कहां उ० उत्पन्न होगा गौ• मौतम + इ. यह जं. जंबूद्वीप में भा० भरत क्षेत्र में पा. पाटली पुत्र नगर में पा. पाटलीवृक्ष पने ५० उत्पन्न होगा से वह त तहां अ० अर्चनीय वं. वंदनीय जा. यावत् भ० होमा से. वह भं० भगवन् अ० पीछे स. चवकर ते० शेष तं० तैसे जा. यावत् अं० अंत करेगा ॥५॥ तं. उस काल ते. उस समय में अ° अंबड प० परिव्राजक के स० सात अं अंते वासी स० शत गि० ग्रीष्म काल में ज. जैसे उ.
कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहेवासे पाडलिपुत्ते जयरे पाडालरुक्खत्ताए पञ्चायाहिति सेणं तत्थ अच्चियवंदिय जाव भविस्सइ ॥ सेणं भंते ! अणंतरं उव्वटित्ता सेसं तंचेव जाव अंतं काहिति ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं
अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासीसया गिम्हकाल समयंसि एवं जहा उबवाजावेमा कहां उत्पन्न होगा? अहो गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पाटलिपुत्र नगर में पाटली वृक्षपने उत्पन्न होगा. वह अर्चित यावत् पूजित होगा और वहां से नीकलकर महाविदेह क्षेत्र में सीझेगा, बुझेगा यावत् अंत करेगा ॥५॥ उस काल उस समय में गंगा नदी के दोनों तरफ रहनेवाले अम्बड है सन्यासी.के.सात तो शिष्य कंपिलपुर, नगर से पादली पुर. नगर जाते रस्ते में साथ लिये. पानी खुटने से पानी के दातार के अभाव से मंगा नदी की रेती में सास सो ही रिहंत सिद्ध आचार्य को नमस्कार
चउदहवा शतकका आठवा
भावार्थ
उद्रेशा
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सना
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