SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1979
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ign पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र परिणामिए सणिवाइए भावे, सण्णिवाइयस्स भावस्स ; से तेणटेणं गौयमा ! एवं वुच्चइ-भाव तुल्लए भाव तुल्लए ॥ ८॥ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-ठाण तुल्लए सं?ण तुल्लए ? गोयमा । परिमंडल संठाणे परिमंडलस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले, परिमंडलसंठाणे परिमंडलस्स · संठाणवइरित्तस्स संठाणस्स संठाणओ णो तुले ॥ एवं वट्टे, तंसे, चउरंसे, आयए ॥ समचउरंससंठाणे समचउरंसस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले, समचउरस्स संठाणे समचउरंसस्स संठाणवइरित्तस्स संठाणओ णो तुल्ले ॥ एवं जाव हुंडे ॥ से तेणटेणं जाव संठाण तुल्लए संठाण तुल्लए ॥९॥ पशमिक की साथ तुल्य है, परिणामिक परिणामिक से तुल्य है और सन्निवाय सन्निवाय भाव से तुल्य है.. अहो गौतम ! इस कारन से भाव तुल्य को भाव तुल्य कहा है ॥ ८॥ अहो भगवन् ! संस्थान तुल्य को संस्थान तुल्य क्यों कहा? अहो गौतम ! परिमंडल संस्थान परिमंडल संस्थान से तुल्य है इस से अन्य की साथ तुल्य नहीं है ऐसे ही वर्तुल, व्यंस, चौरस व लम्बगोल का जानना. समचतुत्र संस्थान समचतुन संस्थान से तुल्य है और इस से अन्य की साथ तुल्य नहीं है ऐसे ही हुंडक तक सब संस्थान का जानना. अहो गौतम ! इस कारन से संस्थान तुल्य से संस्थान तुल्य कहा गया है ॥९॥ पउंदहवा शतकका सानवा उद्देशा 9 भावार्थ 88
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy