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लब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ भावतुल्ले ? भावतुल्ले गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले, एगगुणकालयस्स भावतुल्ले, एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालवइरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ णो तुले, एवं जाव दसगुणकालए, तुल संखेज्जगुणकाल पोग्गले, तुल्ल असंखेजगुणकालएवि ॥ एवं तुल्ल अणतगुणकालएवि ॥ जहा कालए एवं गीलए, लोहियए. हालिद्दए. सुकिल्लए, । एवं सुब्भिगंधे, एवं दुब्भिगंधे, । एवं तित्ते जाव महुरे । एवं कक्खडे जाव लुक्खे । उदइए भावे, उदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले,
उदइय भाव क्इरित्तस्स भावओ णो तुल्ले एवं उवासमिएवि ॥ खइए खओवसमिए ॥ कहा ? अहो मौतम ! एक गुन काला से एक गुन काला भाव से तुल्य है और एक गुन काला पुगल अन्य की साथ भाव से तुल्य नहीं है. ऐसे ही दो तीन यावत् दश गुन काला पुद्गल, संख्यात गुन काला पुद्गल, असंख्यात गुन काला पुद्गल व अनंत गुन काला पुद्गल का जानना. जैसे काला वर्ण का वर्णन किया वैसे ही नील, रक्त, पीत व शुक्ल का जानना. और ऐसे ही सुरभिगंध व दुरभिगंध, तिक्त यावत् मधुर पांच रस, कर्कश यावत् रूक्ष यों आठ स्पर्श का जानना. औदयिक भाव औदयिक भाव की साथ भाव से तुल्य है, औपशमिक औपशमिक की साथ तुल्य है, क्षयोपशमिक क्षयो
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ